October Junction (अक्टूबर जंक्शन) by Divya Prakash Dubey । Hindi Book
दिव्य प्रकाश दुबे:
बेस्टसेलर 'मसालाचाय' और 'शर्ते लाग' लिखने के बहत समय बाद तकदिव्य प्रकाश दबेको यही माना जाता था कि वे ठीक-ठाक कहानियाँ लिख लेते हैं। लेकिन अब जब वे 'स्टोरीबाज़ी' में कहानियाँ सुनाते हैं तो लगता है कि वे ज्यादा अच्छी कहानियाँ सुनाते हैं। TEDx में बोलने गए तो टशन-टशन में हिंदी में बोलकर चले आए। इनकी संडे वाली चिट्ठी बहुत पॉपुलर है। तमाम लिटेरचर फेस्टिवल्स, इंजीनियरिंग एवं MBA कॉलेज जाते हैं तो अपनी कहानी सुनाते-सुनाते एक-दो लोगों को लेखक बनने की बीमारी दे आते हैं। पढ़ाई-लिखाई से B.Tech-MBA हैं। साल 2017 में MBA टाइप नौकरी को अलविदा कह चके हैं। साल 2016 में छपे अपने उपन्यास 'मुसाफिर Cafe' की बंपर सफलता के बाद दिव्य प्रकाश 'नई वाली हिंदी' के पोस्टर-बॉय की तरह देखे जाने लगे हैं। यह इनकी चौथी किताब है।
कहानी का विषय :
चित्रा और सुदीप सच और सपने के बीच की छोटी-सी खाली जगह में १० अक्टूबर २०१० को मिले और अगले १० साल हर १० अक्टूबर को मिलते रहे। एक साल में एक बार, बस। अक्टूबर जंक्शन के ‘दस दिन’ १०/अक्टूबर/ २०१० से लेकर १०/अक्टूबर/२०२० तक दस साल में फैले हुए हैं।
एक तरफ सुदीप है जिसने क्लास बारहवें के बाद पढ़ाई और घर दोनों छोड़ दिया था और मिलियनेयर बन गया। वहीं दूसरी तरफ चित्रा है, जो अपनी लिखी किताबों की पॉपुलैरिटी की बदौलत आजकल हर लिटरेचर फेस्टिवल की शान है। बड़े-से-बड़े कॉलेज और बड़ी-से-बड़ी पार्टी में उसके आने से ही रौनक होती है। हर रविवार उसका लेख अखबार में छपता है। उसके आर्टिकल पर सोशल मीडिया में तब तक बहस होती रहती है जब तक कि उसका अगला आर्टिकल नहीं छप जाता।
हमारी दो जिंदगियाँ होती हैं। एक जो हम हर दिन जीते हैं। दूसरी जो हम हर दिन जीना चाहते हैं, अक्टूबर जंक्शन उस दूसरी ज़िंदगी की कहानी है। ‘अक्टूबर जंक्शन’ चित्रा और सुदीप की उसी दूसरी ज़िंदगी की कहानी है।
बेस्टसेलर 'मसालाचाय' और 'शर्ते लाग' लिखने के बहत समय बाद तकदिव्य प्रकाश दबेको यही माना जाता था कि वे ठीक-ठाक कहानियाँ लिख लेते हैं। लेकिन अब जब वे 'स्टोरीबाज़ी' में कहानियाँ सुनाते हैं तो लगता है कि वे ज्यादा अच्छी कहानियाँ सुनाते हैं। TEDx में बोलने गए तो टशन-टशन में हिंदी में बोलकर चले आए। इनकी संडे वाली चिट्ठी बहुत पॉपुलर है। तमाम लिटेरचर फेस्टिवल्स, इंजीनियरिंग एवं MBA कॉलेज जाते हैं तो अपनी कहानी सुनाते-सुनाते एक-दो लोगों को लेखक बनने की बीमारी दे आते हैं। पढ़ाई-लिखाई से B.Tech-MBA हैं। साल 2017 में MBA टाइप नौकरी को अलविदा कह चके हैं। साल 2016 में छपे अपने उपन्यास 'मुसाफिर Cafe' की बंपर सफलता के बाद दिव्य प्रकाश 'नई वाली हिंदी' के पोस्टर-बॉय की तरह देखे जाने लगे हैं। यह इनकी चौथी किताब है।
कहानी का विषय :
चित्रा और सुदीप सच और सपने के बीच की छोटी-सी खाली जगह में १० अक्टूबर २०१० को मिले और अगले १० साल हर १० अक्टूबर को मिलते रहे। एक साल में एक बार, बस। अक्टूबर जंक्शन के ‘दस दिन’ १०/अक्टूबर/ २०१० से लेकर १०/अक्टूबर/२०२० तक दस साल में फैले हुए हैं।
एक तरफ सुदीप है जिसने क्लास बारहवें के बाद पढ़ाई और घर दोनों छोड़ दिया था और मिलियनेयर बन गया। वहीं दूसरी तरफ चित्रा है, जो अपनी लिखी किताबों की पॉपुलैरिटी की बदौलत आजकल हर लिटरेचर फेस्टिवल की शान है। बड़े-से-बड़े कॉलेज और बड़ी-से-बड़ी पार्टी में उसके आने से ही रौनक होती है। हर रविवार उसका लेख अखबार में छपता है। उसके आर्टिकल पर सोशल मीडिया में तब तक बहस होती रहती है जब तक कि उसका अगला आर्टिकल नहीं छप जाता।
हमारी दो जिंदगियाँ होती हैं। एक जो हम हर दिन जीते हैं। दूसरी जो हम हर दिन जीना चाहते हैं, अक्टूबर जंक्शन उस दूसरी ज़िंदगी की कहानी है। ‘अक्टूबर जंक्शन’ चित्रा और सुदीप की उसी दूसरी ज़िंदगी की कहानी है।
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